न कोई दोस्त है मेरा नही कोई भी साथी है
सोचती हूँ पीठ पर ये ज़ख्म कैसे हो गए ?
बहुत कहते थे वो ख़ुद को मेरा हित चाहने वाले
घर उजड़ते ही मेरा बेदर्द कैसे हो गए ?
ये दुनिए क्या है ये जानो कि ये केवल तमाशा है
जो कल तक थे इधर ऐ दिल वो अब उस पार कैसे हो गए?
पंहुचाया मुकद्दर ने जो शोहरत कि बुलंदी पर
जो कल थे घात मे बठे हमारे यार कैसे हो गए ?
बदलते इस ज़माने ने ज़रा हमको भी बदला है
नहीं कुछ बोलते थे हम कभी बेबाक कैसे हो गए ?