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गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

परिचय

ब्रह्माण्ड घूम कर आई मैं ,
इक नन्ही बूंद गिरी भू पर।
मेरा परिचय इतना सा है ,
मैं शबनम उत्पल के ऊपर।

रविवार, 7 दिसंबर 2008

हम नहीं समझते

कौन समझता है हमको जहाँ मे यारों।
औरों की क्या कहें, हम खुद नहीं समझते।

कैसे हैं हम, कहाँ हैं, क्या आरजू हमारी।
ये कैसी कशमकश है, हम खुद नहीं समझते।

फैली घुटन हवा मे, और सांस ले रहे है।
मजबूरियाँ हमारी, हम खुद नहीं समझते।

क्या मंजिलें हमारी, और रास्ते किधर हैं।
रोशनी है काफी, पर हम नहीं समझते।

मज़हब का नाम लेकर, कर देना कत्ल सबको।
दोपाय का जुनूं ये, हम कुछ नहीं समझते।

फैलाया विष जिन्होंने, वे पहन उजले कपडे।
बन हुक्मरान बैठे,हम ये नहीं समझते।

कहते हैं लोग सारे, तुम बोलती बहुत हो।
चुप रहके दर्द सहना, ये हम नहीं समझते।