पृष्ठ

रविवार, 25 अप्रैल 2010




मेरे गीत मेरी कलम खो गई

मेरे सपनों कि दुनिया भरम हो गई

मैंने चाह बहुत मुझको साँसे मिलें

रुख बदल के हवाएं कहाँ खो गईं।


मुझको खामोशियों से मोहोब्बत हुई

मझपे मेरे खुदा की इनायत हुई

मैंने चाह मोहोब्बत से इकरार हो

हो गई चुप जुबां तो कयामत हुई।


मेरी आँखों का पानी हवा हो गया

मेरा हर दर्द मेरी दावा हो गया

धूप मे चलते चलते जो ठोकर लगी

मेरा साया भी मुझसे खफा हो गया।


फिर भी जिंदा हूँ मैं और जियूंगी अभी

झूमके मै के प्याले पियूंगी अभी

अपनी पैनी नज़र से खुदा देख ले

मैं मुकद्दर की कतरन सियूंगी अभी।


मुझमे बाकी हैं साँसें अभी और भी

मुझको लिखनी हैं ग़ज़लें अभी और भी

ये तेरा नूर-ऐ-कुदरत सलामत रहे

मुझको गिनने हैं तारे अभी और भी।