नहीं कुछ लिखा है बहुत वक्त बीता
चलूँ आज कागज़ को फिर से रंगूँ मैं .
नहीं बाँध सकती हवाओं को हरगिज़
खयालात पर कैसे बंदिश रचूँ मैं .
खुद अपने ही चहरे से वाकिफ नहीं हूँ
नकाबों से तेरे क्या शिकवा करूँ मैं .
लहू कम बचा है रगों मे जो मेरी
चरागों को अब कैसे रोशन करूँ मैं .
क्यों बेजान चीज़ों से बतिया रही हूँ
चलूँ अब दरख्तों से बातें करूँ मैं .
सुना तेरे दम से ही चलती है दुनिया
खुदा कैसे तुझको ही काफ़िर कहूँ मैं.