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रविवार, 19 फ़रवरी 2012

रिक्त...


जीवन मे रिक्तता टटोलूं ,
रिक्त दिशा मे चलूँ कहीं पर ,
आज पुनः भावों की धो लूँ ,
जीवन मे रिक्ताता टटोलूं .

अंतर्मन के दीप बुझा कर ,
गहन निशा मे निर्विचार हो ,
एकाकी आनंद समेटूं ,
मानस के वातायन खोलूं .
जीवन मे रिक्तता टटोलूं .

ना कोई उन्मुक्त हास हो ,

ना ही कोई करुण रुदन हो ,

वक्रित ना हो मानस रेखा ,
चिर-निद्रा से जग कर सो लूँ .
जीवन मे रिक्तता टटोलूं .

परम शून्य आकार अटल हो ,
किन्तु शून्य वह निराकार हो ,
खुले नयन भी दृश्यहीन हों ,
आज न अपना भी स्वर बोलूं .
जीवन मे रिक्तता टटोलूं
.