मैं कवि की कलम हूँ।
विचारों के सागर मे,
मंथन की नैया की पतवार हूँ मैं।
मैं कवि की कलम हूँ।
अनैतिकता के युद्धों मे
नैतिकता की तलवार हूँ मैं।
मैं कवि की कलम हूँ।
क्रांति की चिनगारी हूँ
शोला हूँ , अंगार हूँ मैं।
मैं कवि की कलम हूँ।
मेरे सामने झुक जाएँ बंदूकें
वो ताकतवर हथियार हूँ मैं।
मैं कवि की कलम हूँ।
कभी रुलाती , कभी हंसाती
कभी गंवार तो कभी होशियार हूँ मैं।
मे कवि की कलम हूँ।
मैं ही रोटी , मैं ही कपडा
मतवालों का संसार हूँ मैं।
मैं कवि की कलम हूँ।
विचारों के सागर मे,

मंथन की नैया की पतवार हूँ मैं।
मैं कवि की कलम हूँ।
अनैतिकता के युद्धों मे
नैतिकता की तलवार हूँ मैं।
मैं कवि की कलम हूँ।
क्रांति की चिनगारी हूँ
शोला हूँ , अंगार हूँ मैं।
मैं कवि की कलम हूँ।
मेरे सामने झुक जाएँ बंदूकें
वो ताकतवर हथियार हूँ मैं।
मैं कवि की कलम हूँ।
कभी रुलाती , कभी हंसाती
कभी गंवार तो कभी होशियार हूँ मैं।
मे कवि की कलम हूँ।
मैं ही रोटी , मैं ही कपडा
मतवालों का संसार हूँ मैं।
मैं कवि की कलम हूँ।
6 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर कविता। बधाई।।
badisahjta se kavi ki takat ka vardan kiya hai- Utam
कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी
स्नेहिल अन्जुशा
सफ़लता के शीर्ष तक ले जायेगी
तुझे तेरी ये कलम
क्योकि कि ये कवि की कलम है
और वो कवि तु जो है
सस्नेह
yaar sudh hindi likhi h samajh m hi nhi ati
yaar sudh hindi likhi h samajh m hi nhi ati
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