चाहिए थी रोशनी ज़्यादा ही ज़माने को
कुछ नहीं मिला तो मेरा दिल जला दिया .
ऐ ग़म तेरी वफ़ा का मैं शुक्रिया करुँ
इस जिंदगी की लाश को फिर से जिला दिया.
कोई नहीं है अपना ऐ ग़म सिवाय तेरे
निस्पंद सी थी आँखें तुने रुला दिया.
मंहगा थ वो ज़हर बहुत पीना था जो मुझे
पर दोस्तों ने मोल भाव कर दिला दिया.
दिल चाहता था मेरा दो पल सुकून के
खुदा ने ख्वाहिशों पे भी पहरा लगा दिया.
कितना बड़ा समंदर मेरे नसीब मे
अँखियों के किनारों ने मुझको बता दिया.
मैं कब्र मे थी जिस दिन आया खुदा ज़मीं पे
मैंने बदल के करवट मुह को फिर लिया.