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रविवार, 26 जून 2011

नहीं कुछ लिखा है बहुत वक्त बीता
चलूँ आज कागज़ को फिर से रंगूँ मैं .

नहीं बाँध सकती हवाओं को हरगिज़
खयालात पर कैसे बंदिश रचूँ मैं .

खुद अपने ही चहरे से वाकिफ नहीं हूँ
नकाबों से तेरे क्या शिकवा करूँ मैं .

लहू कम बचा है रगों मे जो मेरी
चरागों को अब कैसे रोशन करूँ मैं .

क्यों बेजान चीज़ों से बतिया रही हूँ
चलूँ अब दरख्तों से बातें करूँ मैं .

सुना तेरे दम से ही चलती है दुनिया
खुदा कैसे तुझको ही काफ़िर कहूँ मैं.

शनिवार, 1 जनवरी 2011

नव वर्ष


नए वर्ष की नूतन वेला
चीर तिमिर को हुआ सवेरा.

नव पल्लव, नव पुष्प सुगन्धित
करते प्रतिपल मन आह्लादित.

वसुंधरा कलरव से गुंजित
है नवीन अम्बर आच्छादित.

नव दिनकर का नव प्रभात है
नव सरिताएं, नव प्रपात हैं.

नई डोर है मन को थामे
नव आशाएं, नई उड़ानें.

नया साल खुशहाली लाये
हृदयों में आनंद समाये.

मिटें सभी दुःख की रेखाएं
भाग्योदय सत्कर्म कराएँ.