मन मौज मे है आज मेरे दिल बता मैं क्या करूँ
क्षुद्र गिरि, सीमित धरा, पग भर मैं इनको नाप लूं।
मन मौज मे है...................................................
मन उल्लसित फिरता चमन
मन विहग बन उड़ता गगन
मन की गति अविराम है
मन को कहाँ विश्राम है।
अम्बर को गोदी मे बिठा लहरों के संग बहती चलूँ।
मन मौज मे है....................................................
मन है झंकृत तार कोई
मन तरंगी धार कोई
मन कल्पना का धाम है
मन गर्जना उद्दाम है।
सूरज बुझा दूं फूंक कर, चंदा को मुट्ठी मे भरू।
मन मौज मे है...............................................
मन ही है आशा की उषा
मन ही निराशा की निशा
मन से बड़ा ना मीत है
मन ही के जीते जीत है।
पदचाप से धरती हिला भूकंप का आभास दूँ ।
मन मौज मे है.............................................
मन की खनक को सुन रही
मन ही मे मन को गुन रही
मन का नहीं आधार है
मन मानसिक व्यापार है।
गंगा डुबकी मार के हरि नाम का सुमिरन करूँ ।
मन मौज मे है.....................................................
मन खूब नभ मे उड़ चुका
मन बाग़ मे भी फिर चुका
मन की गति को थाम दूँ
मन को ज़रा आराम दूँ।
पीकर सियाही लेखनी बहके तो कविता नाम दूँ।
मन मौज मे है.......................................................
9 टिप्पणियां:
अन्शुजा बहुत ही सुन्दर गीत लिखा है .और तुम तो हर विधा में माहिर हो ..हिंदी के सुन्दरतम शब्दों का प्रयोग वाह..
और हाँ कमेंट्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दो आसानी रहेगी.
मन ही है आशा की उषा
मन ही निराशा की निशा
मन से बड़ा ना मीत है
मन ही के जीते जीत है।
पदचाप से धरती हिला भूकंप का आभास दूँ
बहुत भावपूर्ण आत्मविश्वास से ओत-प्रोत पंक्तियाँ...
प्रभावशाली रचना के लिए बधाई..शुभकामनाएँ
Bhavo va shabdo- ka atulniy mishran
बहुत भावपूर्ण आत्मविश्वास से ओत-प्रोत पंक्तियाँ...
man ki adamya gatiyon ka badi hi saralvritti se chitran kiya hai....
shubhkaamnayen..
आपके मन की बेलगाम उड़ान बहुत ही लाजवाब है ... बहुत ही मधुर गीत की उत्पत्ति हुई है ... अनुपम रचना ...
bahut khubsurat geet hua hai
likhti rahein
मन खूब नभ मे उड़ चुका
मन बाग़ मे भी फिर चुका
मन की गति को थाम दूँ
मन को ज़रा आराम दूँ।
पीकर सियाही लेखनी बहके तो कविता नाम दूँ।
------------ अति उत्तम
बहुत अच्छा :)
एक टिप्पणी भेजें