
जीवन मे रिक्तता टटोलूं ,
रिक्त दिशा मे चलूँ कहीं पर ,
आज पुनः भावों की धो लूँ ,
जीवन मे रिक्ताता टटोलूं .
अंतर्मन के दीप बुझा कर ,
गहन निशा मे निर्विचार हो ,
एकाकी आनंद समेटूं ,
मानस के वातायन खोलूं .
जीवन मे रिक्तता टटोलूं .
ना कोई उन्मुक्त हास हो ,
ना ही कोई करुण रुदन हो ,
वक्रित ना हो मानस रेखा ,
चिर-निद्रा से जग कर सो लूँ .
जीवन मे रिक्तता टटोलूं .
परम शून्य आकार अटल हो ,
किन्तु शून्य वह निराकार हो ,
खुले नयन भी दृश्यहीन हों ,
आज न अपना भी स्वर बोलूं .
जीवन मे रिक्तता टटोलूं .
6 टिप्पणियां:
जब जीवन में रिक्तता दिखती है, मन गतिमान हो जाता है। तृप्त होना किसे भाता है...बस रिक्त रहूँ...
आकार और निराकार में अटका शून्य .. भटक के रह जाता है ...
सुन्दर..भाव व अभिव्यक्ति ....
--अन्तर के पट खोल रे बावा अन्तर के पट खोल....
man kee riktata ko bhavibhor karane walee panktiyan padh kar behad achchha laga.... keep it up
बहुत सुन्दर......
अच्छी अभिव्यक्ति..
अनु
achi aur ispasht bhav -***
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