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रविवार, 23 जून 2013

क्षणिकाएँ

तुम मेरी शख्सियत को यूँ पहचान लो
की मुझे शायरी का अदब जान लो
मैं हवा में परों से जो उडती दिखूं
तो मेरी आरज़ू की फ़तह मान लो.
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वो जो सबकी शकल को दिखाया करे
इस हुनर से बड़ाई वो पाया करे
आइना न्याय करने के काबिल नहीं
पीठ की कालिखें जो छुपाया करे.
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सबने मेले को खुशियाँ रवानी लिखा
ये खबर भी बड़ी थी इसे ना लिखा
जब खिलौने पे बच्चे का दिल आ गया
बाप की आँख में मुझको पानी दिखा.
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आँख भी बंद है साँस भी रुक गयी
जिंदगी की वो सीधी छड़ी झुक गयी
आज बाबा की पगड़ी की सारी चमक
आपनी औलाद के हाथ से धुल गयी.

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