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शनिवार, 26 जून 2010

# मैं क्या करूँ #


# आज नदिया के किनारे मैं खडी थी सोचती
भावनाओं की लहर थमती नहीं, मे क्या करूँ।

# आँख से निकले जो आंसू आँख मे ही सूखते
ऐसी जज्बातों की लौ है, हाय रे मैं क्या करूँ.

# रेत पर लिख दी थी मैंने अपने दिल की दास्ताँ
ये हवाएं भी मेरी दुश्मन बनी, मैं क्या करूँ.

# ना बिछाना फूल मेरी राह मैं ऐ हमसफ़र
पाँव के छाले सुहाते हैं मुझे, मैं क्या करूँ.

# आज अपने आशियाँ को इक नज़र भर देख लूं
कल ये तिनके बिखर जाएँ तो भला मैं क्या करूँ.

# चिलचिलाती धूप मे चलनें की आदत हो गई
छाँव मे जलता बदन है अब मेरा, मैं क्या करूँ.

# मौत से बढ़कर नहीं उम्मीद कोई दूसरी
फिर उसी की आरज़ू मे दिन कटा, मैं क्या करूँ

21 टिप्‍पणियां:

mai... ratnakar ने कहा…

ना बिछाना फूल मेरी राह मैं ऐ हमसफ़र
पाँव के छाले सुहाते हैं मुझे, मैं क्या करूँ.

चिलचिलाती धूप मे चलनें की आदत हो गई
छाँव मे जलता बदन है अब मेरा, मैं क्या करूँ.

मौत से बढ़कर नहीं उम्मीद कोई दूसरी
फिर उसी की आरज़ू मे दिन कटा, मैं क्या करूँ।



u r simply Great anshuja ji, bahut hee khoob likhatee hain aap

baar-baar padhte rahen aap ka likha huaa
man hai yeh bharata naheen, main kya karoon

waiting for more and more creation of yours
regards and all the best

बेनामी ने कहा…

Waw it's gd

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

i have no words to appreciate ur poem.

Unknown ने कहा…

i have no words to appreciate ur poem.

abhi ने कहा…

चिलचिलाती धूप के साथ अपना भी पुराना नाता है... :)

बहुत सुन्दर

मीना कुमारी जी की एक शायरी याद गयी..कभी सुनाऊंगा..

Aditya Tikku ने कहा…

aap bahut hi sunder likhati h apki agli rachana ka intzar rhega once again atti uttam.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

.मौत से बढ़कर नहीं उम्मीद कोई दूसरी
फिर उसी की आरज़ू मे दिन कटा, मैं क्या करूँ
..दर्दनाक अभिव्यक्ति..अच्छा लिखतीं हैं आप .

बेनामी ने कहा…

अन्जुषा जी , ग़ज़ल के कंटेंट बहुत अच्छे है, आप एक अच्छी रचनाकार लगती है, शायद मेहनत आपने कुछ कम ही की हो इस ग़ज़ल पर,क्योंकि शिल्प कहीं कहीं खटक रहा है, आपको किसी सफल रचनाकार से एक बार राय अवश्य लेनी चाहिए ,हम खुद अपने ज्ञान को पुख्ता करने के लिए निरंतर विद्वत्त जनों के संपर्क में रहते हैं

बेनामी ने कहा…

soory pls,naam galat likh diya uupar maine

anshuja ने कहा…

sir,
sujhav dene ka sukriya... mene apni poem check ki mujhe usme kisi prakaar ka chhand dosh ya shilp mai galti nazar nahi aa rahi.. agar aap bata saken ki kis pankti mai dosh hai to badi maharbaani hogi.

Unknown ने कहा…

really deep n sad feelings....gr8 work

Mahak ने कहा…

@अंशुजा जी

आप भी इस common blog का member एवं follower बनने के लिए सादर आमंत्रित है

हिंदुत्व और राष्ट्रवाद ने कहा…

Great Ansuja...

But I hav no understanding about "POEM" & "POEM WRITER"...

JUST I LIKE THESE FEW LINES..

आज अपने आशियाँ को इक नज़र भर देख लूं
कल ये तिनके बिखर जाएँ तो भला मैं क्या करूँ..

Its may be Due to Gr8 Heart Feeling & Deep Sorrow...

Thanks & Keep Writing..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपके भाव अच्छे हैं ... शिल्प सीखने से आ जाता है ... अतः लिखते रहें .....

mai... ratnakar ने कहा…

anshuja ji, kahan hain aap....? bahut achchha padhne ke ichchhuk mujh jaise logon ko aap kee rachna ka intezaar hai
pls do keep writting, u r a wonderful writter

NO-MORE ने कहा…

well knitted words anshuja....it looks like as if filling some gap or say vaccuum wid pain and helplessness....gud work..

NO-MORE ने कहा…

well knitted words anshuja....it looks like as if filling some gap or say vaccuum wid pain and helplessness....gud work..

बेनामी ने कहा…

मार्मिक प्रस्तुति - अति सुंदर - हार्दिक बधाई

Richa P Madhwani ने कहा…

मौत से बढ़कर नहीं उम्मीद कोई दूसरी
फिर उसी की आरज़ू मे दिन कटा, मैं क्या करूँ।

http://shayaridays.blogspot.com

nice post

अर्यमन चेतस पाण्डेय ने कहा…

# ना बिछाना फूल मेरी राह मैं ऐ हमसफ़र
पाँव के छाले सुहाते हैं मुझे, मैं क्या करूँ.

# आज अपने आशियाँ को इक नज़र भर देख लूं
कल ये तिनके बिखर जाएँ तो भला मैं क्या करूँ.

# चिलचिलाती धूप मे चलनें की आदत हो गई
छाँव मे जलता बदन है अब मेरा, मैं क्या करूँ.

# मौत से बढ़कर नहीं उम्मीद कोई दूसरी
फिर उसी की आरज़ू मे दिन कटा, मैं क्या करूँ।

do i need to comment on such beautiful lines???

:)